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समझ सोच कर गुल हटाए गये हैं / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
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समझ सोच कर गुल हटाये गये हैं
सलीके से जंगल लगाये गये हैं
हमें क्या पता था हमें क्या ख़बर थी
ये काँटे तो यारो लगाये गये हैं
इधर मोड़ लीजे उधर मोड़ लीजे
ये क़ानून कैसे बनाये गये हैं
समूचा शहर भूख से मर रहा है
मगर मुद्दे क्या—क्या उठाये गये हैं
बनाओ भवन ऊँचे—ऊँचे बनाओ
मगर झोंपड़े क्यों गिराये गये हैं.