भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समता का गान / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
मानव-समता के रंगों में
आज नहा लो !
सबके तन पर, मन पर है जिन
चमकीले रंगों की आभा,
उन रंगों से आज मिला दो
अपनी मंद प्रकाशित द्वाभा,
युग-युग संचित गोपन कल्मष
आज बहा लो !
भूलो जग के भेद-भाव सब
वर्ण-जाति के, धन-पद-वय के,
गूँजे दिशि-दिशि में स्वर केवल
मानव महिमा गरिमा जय के,
मिथ्या मर्यादा का मद-गढ़
आज ढहा दो !