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समतुल्य / संगीता कुजारा टाक

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समंदर उलट रहा था
अपने इतिहास के पन्नों को,
ऐसा कब था
जब दो दरिया मिले थे
और तूफान बाहर की बजाय
अंदर उठने लगा था?
रंग भी
स्वाद भी
लगभग एक से थे?

यह पानियों का कैसा दरिया था
जो उसकी गहराई से ज़्यादा था?

वह ज़वाब ढूँढ ही रहा था
तभी उसे महसूस हुईं
मेरी
दो आँखें!