भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समतोल / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
ले’र
समदर री
अणगणित लैरां स्यूं
अंसदान
रचै सूरज
अमरित स्यूं भरोडया बादळ
जका बरस’र
पाछो दे दवै लैरां रो दायभाग
आ है सिसटी रै समतोल रो
परतख परमाण
राखै सिरजण’र बिसरजण
आखै बिरमांड नै गतिमान !