समन्दर का तिलिस्म औ’ चिड़िया की परवाज़ / मुन्नी गुप्ता
चिड़िया कहती है
समन्दर तुम्हारा तिलिस्म तो बहुत बड़ा है
तुम सारा खेल रचते हो
सारी कायनात, अपने में बिखेर लेते हो
लेकिन,
मैं तिलिस्म में नहीं
जीवन में विश्वास करती हूँ ।
न तो मैं चमकीली रेत पर बैठकर
तुम्हारे लिए शान्ति-गीत गा सकती हूँ
न ही तुम्हारी लहरों पर एक अनन्त यात्रा के
ख़्वाब देखती हूँ
और न ही,
समन्दर और आसमान के बीच
त्रिशँकु की तरह
फँसी रह सकती हूँ
मुझे अपनी मंज़िल का पता नहीं
मगर ये जानती हूँ,
जीवन को जीवन से काटकर
अपने पँखों पर समेटकर
तुम्हें ले नहीं जा सकती ।
क्योंकि,
जीवन में मेरा भरोसा गहरा है
मैं इसके खिलाफ कैसे हो जाऊँ ?
तुम्हारे लिए,
तुम्हारी मछली, तुम्हारी रेत,
तुम्हारी वनस्पतियाँ, तल में असँख्य जीव-जन्तु,
उन सबका क्या ?
जीवन में,
चिड़िया का गहरा विश्वास
तिलिस्म के विरुद्ध है ।