चिड़िया समन्दर से कहती है
तुम अपनी ख़्वाहिशों में
आसमान होना क्यूँ चाहते हो ?
सब कुछ का अस्तित्व तहस-नहस कर
क्यूँ ,
क्यूँ, चिड़िया के पँखों पे सवार होकर
दूर देश की यात्रा पर निकलना
चाहते हो ।
समन्दर
ये तुम्हारा स्वभाव नहीं ।
चाहत विस्तार देता है
औ’ संघर्ष ताक़त ।
तुम कब से,
अपने स्वभाव के विपरीत चलने लगे ?
मैंने तो तुम्हें,
‘विनाश’ में नहीं ‘सृजन’ में देखा है
‘एकान्तवास’ में नहीं,
‘सहजीवन’ में देखा है ।