भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समन्दर की परवाज़ औ’ चिड़िया का पाठ / मुन्नी गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिड़िया समन्दर से कहती है
       तुम अपनी ख़्वाहिशों में
आसमान होना क्यूँ चाहते हो ?
सब कुछ का अस्तित्व तहस-नहस कर
क्यूँ ,
क्यूँ, चिड़िया के पँखों पे सवार होकर
       दूर देश की यात्रा पर निकलना
         चाहते हो ।
 
          समन्दर
  ये तुम्हारा स्वभाव नहीं ।
 
चाहत विस्तार देता है
औ’ संघर्ष ताक़त ।
 
तुम कब से,
अपने स्वभाव के विपरीत चलने लगे ?

मैंने तो तुम्हें,
‘विनाश’ में नहीं ‘सृजन’ में देखा है

‘एकान्तवास’ में नहीं,
‘सहजीवन’ में देखा है ।