भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समन्दर : तुम्हारा तिलिस्म बड़ा है / मुन्नी गुप्ता
Kavita Kosh से
समन्दर सुनो !
तुम्हारा तिलिस्म बड़ा है
विशाल है, असीम है, निस्सीम है,
इसी तिलिस्म में तुम्हें रहने की आदत है ।
अपने तिलिस्म के बाहर
बाहरी दुनिया के तिलिस्म में
कैसे जी पाओगे ?
कैसे उन्मुक्त रह पाओगे ?
अपनी विशाल दुनिया से बाहर छोटी-सी चिड़िया बन
उन्मुक्त आकाश में कैसे उड़ पाओगे
क्या यह मुमकिन है
चिड़िया न सही, आसमाँ तले
समन्दर की तरह बह पाना ।