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समभार / एरिष फ़्रीड / प्रतिभा उपाध्याय
Kavita Kosh से
कविता है सच्ची
दुनिया है झूठी
मिटाता हूँ मैं अनावश्यक
आवश्यक हो जाता है
स्पष्ट
दुनिया मिटाती है आवश्यक
अनावश्यक हो जाता है
धुँधला
दुनिया से लगता है
डर मुझे
कमज़ोर है वह
कविता से भी।
मूल जर्मन से अनुवाद - प्रतिभा उपाध्याय