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समय! धीरे धीरे चल / लावण्या शाह
Kavita Kosh से
समय ! धीरे धीरे चल !
कितने हैं बाकी काम अभी,
कुछ तुझको भी है ध्यान ?
सब तुझसे बंध कर चलते हैं
उन्हें भी याद कर , नादान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
जो बिछडे साथी हैं उनका भी
कर लिहाज धर बाँह सभी,
भूखे, प्यासे मानव दल का,
बनना होगा विश्वास अभी -
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
ना व्यर्थ गँवाना अपने को,
शोर शराबे भरी गलियों में,
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रंगरेली हो,
क्या उनसे ही हो बात सभी ?
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
राह तकें राजा रंक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओं के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्यगान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल!
इस पृथ्वी पट पर तू है,
भूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !