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समय इलज़ाम कुछ लेता नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
समय इल्ज़ाम कुछ लेता नहीं है
किसी के वास्ते रुकता नहीं है
नदी बहती है पर्वत से निकल कर
समन्दर तो कभी बढ़ता नहीं है
ये मौसम बेवजह कब है बदलता
किसी की बेरुखी सहता नहीं है
हमेशा हुस्न का चर्चा है होता
कहीं भी इश्क़ का चर्चा नहीं है
जरा सा खिड़कियों से झाँक देखो
हवा का कोई भी झोंका नहीं है
बरसते देर से बादल यहाँ पर
मगर आँगन कोई भीगा नहीं है
लगी है याद तड़पाने तुम्हारी
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं है