Last modified on 30 नवम्बर 2016, at 16:13

समय एक नदी / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

नूनू! ई संसार छेकेॅ!
यहाँ जेकरोॅ साथ जत्तेॅ दिन रहं छै;
ओकरोॅ साथ ओत्ते दिन रहेॅ छै।

समय एक अनन्त नदी रं बहलोॅ जाय छै...
जेकरा में आदमी
खोॅड़-पतारोॅ रं भाँसलोॅ-भाँसलोॅ एक ठाँ मिलै छै
तेज धारोॅ में एक साथ बही छै
आ बीचे रस्ता में बेगरी जाय छै,
अनादि-अनन्त काल तक बेगरी जाय छै,
निर्मोही रं जेना कभी कोय बात नै होलोॅ रेॅहेॅ
कोय परिचय-पाँत नै!

समय के धारा बड़ी क्रूर होय छै
वें नै बूझै छै मोह-ममता-माया
जेना शीशा दरकै छै वहेॅ रं फाड़ी देॅ छै बीहोॅ।
फेरू आदमी बूक बान्ही केॅ
लाचार ओकरोॅ धारोॅ में बहलोॅ जाय छै
निरीह ... मौन ... चुपचाप!