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समय का शंख / केदारनाथ अग्रवाल

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मेरे हाथ में आ गया है
समय का शंख
जो मेरी फूँक से बजेगा
अवश्य बजेगा
सबको सुनाई देगा मेरा स्वर

रचनाकाल: २८-१०-१९६५