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समय की लगाम / पद्मजा शर्मा
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चाल देखकर लगता है, मंजिल आने को है
सुहाना समय ठहरता था कभी
जाने को है
जब से पता चला
जाने वाले हो तुम
बढ़ गया है मेरा आना एकाएक
बिछुड़ना है तय
इसी से मिलना चाहती हूँ और अधिक
मैं हँसना चाहती हूँ तब तक
जब तक आँखों में न आ जाएँ आँसू
करना चाहती हूँ तुम से ढेरों बातें
यूँ देखा जाये तो बात कुछ नहीं
समय की लगाम छूटने वाली है हाथ से
इस डर से
मेरी पकड़ हो रही है मज़बूत
जबकि तय है
समय निकल जायेगा आगे
मै रह जाऊँगी पीछे
बहुत पीछे
किसी दिन।