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समय के उस पार / अनिल जनविजय

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समय के उस पार
खड़ी थीं तुम
मैं समय के इस पार था
बीच हमारे
नभ-वितान अपार था

तुम थीं
उस लोक की वासी
मैं इस लोक में प्रवासी
बीच हमारे
बस स्नेह-दुलार था

तुम गगन
रति-मति की अवतार
मैं अनिल
हठी-गति का विस्तार
बीच हमारे
अब अलंघ्य पहाड़ था

1997 में रचित