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समय के देवता ! / श्याम नारायण मिश्र
Kavita Kosh से
ओ समय के देवता !
थोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूँ ।
तुम्हारे पुण्य-चरणों की
महकती धूल में
आस्था के बीज बोना चाहता हूँ ।
उम्र भर दौड़ा थका-हारा,
विजन में श्लथ पड़ा हूँ ।
विचारों के चक्के उखड़े,
धुरे टूटे,
औंधा रथ पड़ा हूँ ।
आँसुओं से अँजुरी भर-भर,
तुम्हारे चरण
धोना चाहता हूँ ।
धन-ऋण हुए लघुत्तम
गुणनफल शून्य ही रहा ।
धधक कर आग अंतस
हो रहे ठंडे, आँख से
बस धुआँ बहा ।
तुम्हारे छोर पर
क्षितिज पर,
अस्तित्व खोना चाहता हूँ ।