समय के पास / समीर वरण नंदी / जीवनानंद दास
क्या किया और क्या सोचा
यह सब समय के पास गवाही देकर जाना पड़ता है।
वो सब एक दिन हो सकता है किसी सागर के पार
आज की परिचित किसी नील आभा वाले पहाड़ पर
अन्धकार में हाड़-मांस की तरह सोया हो
फिर भी अपनी आयु के दिन
-गिनता रहता है मानव चिर दिन
नीलिमा से बहुत दूर हटकर
सूर्यलोक में अन्तर्हित होकर
पपीरस में-उस दिन प्रिटिंग प्रेस ने कुछ नहीं कहा
प्राचीन दिनों के बाद नयी शताब्दी का चीन
खो गया उस दिन।
आज मनुष्य हूँ मैं फिर भी सृष्टि के हृदय में
हेमन्ती स्पन्दन के पथ की फ़सल
और मानव का अगला कंकाल
और नव-
नव-नव मानव के भीतर
केवल अपेक्षातुर होकर पथ पहचानना
पहचान लेना चाहता
और उस चाहने के रास्ते पर बाधा बना अन्न की असमाप्त भूख
(क्यों है भूख-
क्यों है वह असमाप्त)
जो सब पा गये उनका लुटाना
जो नहीं पाये उनके जी का जंजाल
मैं, यह सब।
समय के सागर पार
कल की सुबह और आज के अन्धकार में
सागर के विशाल सफे़द पक्षी की तरह
छाती में दो डैने फैलाये
कहीं उच्छल प्राण शिखर
जलाता है साहस, साध, स्वप्न है, सोचता है।
सोच लेने दो-यौवन की जीवन्त प्रतीक, अपनी जय-जयकार
फिर प्रौढ़ता की ओर पृथ्वी के जाने की उम्र के
आगे आ किसी आलोक पक्षी को देखा है?
उसकी जय-जयकार युग-युग में जय-जय।
डोडो चिड़िया नहीं है।
बार-बार मनुष्य पृथ्वी की आयु में जन्मा है
नये-नये इतिहास के नाव से भिड़ा है
तब भी कहाँ है उस अनिवर्चनीय
सपनों की सफलता-नवीनता-शुभ मानवता की भोर?
नचिकेता, जराथु, लाओत्से, एन्जिलो, रूसो, लेनिन की चाहत भरी दुनिया
हाँककर ले आ पाये हैं हमारे लिए स्मरणीय शतक
जितना भी शान्त स्थिर होना चाहते हैं
उतना ही अन्धकार में इतिहास पुरुषों को दृढ़ आघात लगती है।
कहीं भी बिना आघात-आघातरहित अग्रसर सूर्यलोक नहीं।
हे काल पुरुष तारा, अनन्त द्वंद्व की गोद में चढ़ा रहना होगा
केवल गति का गुणगान करते-नाव खोली है स्वच्छन्द उत्सव में मैंने
नई तरंग पर रौद्रविप्लव में मिलन सूर्य पर मानविक युद्ध
क्रम से निस्तेज हो जाता है, क्रम से गंभीर हाता है, मानव जाति मिलन?
नयी-नयी मृत्यु ध्वनि, रक्त ध्वनि, भय बोध जीत कर, मनुष्य के चेतना के दिन
घोर चिन्ता में राख होकर फिर भी इतिहास महल में नवीन
होगी क्या मानव की पहचान-फिर भी हर आदमी साठ बसन्तों के भीतर
यह सब सुन्दर निबिड़ की आवाज़ है....है....है....उसी बोध के भीतर
चल रहा है नक्षत्र, रात, सिन्धु रीति, मानव का कामी हृदय
जय हो अस्त सूर्य, जय अलख अरुणोदय जय।