भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय को शब्द दो / हरेराम बाजपेयी 'आश'
Kavita Kosh से
ऊषा जब सूरज के संग हिरन हुई
बादल बहके कविता में सुबह हुई,
प्रकृती के गात गात में महकी ऋतुगंध,
समय को शब्द दे लेखनी अमर हुई।