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समय न था / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
					
										
					
					एक चिड़िया उड़ रही थी
आकाश में,
उसकी पूरी उड़ान देखने का
     समय न था.
फूल हिल रहे थे
कई-कई रंगों में
उनके रंग पहचानने का
    समय न था.
थोड़ी बदली थी
जो ढक लेती थी धूप
फिर निकलती धूप को
देखने का
    समय न था.
समय न था
कि उतरती सीड़ियों पर
जल्दी-जल्दी न उतरूँ.
    समय न था.
	
	