भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय पूछता है / अशोक कुमार
Kavita Kosh से
समय पूछता है मुझसे
कि चौपड़ खेलना जानता हूँ
या शतरंज
कि दो ही तो खेल हैं अभी
आज के माहौल में
और वे बंद कमरों में खेले जा रहे हैं
समय पूछता है मुझसे
क्या पसंद है मुझे
दाँव या शह और मात
कि बिछी हुई हैं बिसातें
दोनों ही जगह
और एक पक्ष लेना है मुझे
तो मैं कौन-सा पसंद करूँगा
समय सवाल उठाता है
कि एक की पाँच लोगे
या ढाई घर दौड़ते घोड़े की मात खाओगे
कि बोली लगाते लोगों
और चाल चलते लोगों
में कौन पसंद हैं मुझे
समय बार-बार कहता है
कि समय यही है
जुआ या षड्यंत्र
और जीना और मरना
इनके दो पाटों के बीच में दब कर होगा
समय फिर पूछता है
कि विकल्पों में
मैंने कौन-सा चुना है।