समय यदि लौटता हो चक्रवत / दिनेश्वर प्रसाद
समय यदि लौटता हो चक्रवत्
उसकी अराएँ यदि घूमकर
बीते हुए युगों को दुहराती हों
ऋतुओं के क्रम की तरह
तो फिर आएँ कृष्ण, बुद्ध और ईसा
उनके चरण पृथ्वी को पावन करें
शून्य की गुफाओं में सोई हुई
उनके मंगल वचन
नवयौवन में जागें
समय यदि लौटता हो चक्रवत्
उसकी अराएँ यदि घूमकर
बीते हुए युगों को दुहराती हों
ऋतुओं के क्रम की तरह
तो फिर बेन मरे
दुर्दान्त ज़ार फिर टूटे
फिर वह सब घटे
जिसकी दिगन्तव्यापी ज्वाला में
मानव की समता और एकता का
अर्थ उजागर हो
न्याय की विजय का अर्थ
चिरस्थायी बिजली-सा फैल जाए
समय यदि लौटता हो चक्रवत्
उसकी अराएँ यदि घूमकर
बीते हुए युगों को दुहराती हों
ऋतुओं के क्रम की तरह
तो भी नहीं हो यह
कृष्ण को व्याध का तीर
बुद्ध को देवदत्त की ईर्ष्या
ईसा को यूदस का
विश्वासघात सहना पड़े
बल्कि, बल्कि ऐसा हो
हारा हुआ स्पार्टेकस जीत जाए
पददलित जनता की आर्त्तवाणी ।