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समय संकेत / सुकान्त सोम
Kavita Kosh से
एहि तरहें चुप नहि रहै दिन कहियो
निस्तब्धता एहन त’ कहियो ने रहै कि
नवगछुलीक ठाढ़ि सभक आपसी कनफुसकी
एना भ’ क’ सुनबामे आबै
सूर्यसँ भटल सोन
हरियर-हरियर पात पर एतेक भारी होइक
एहन त’ नहि रहै दिन कहियो
साँझमे शुरू भेल अद्भुत हवा
रातुक साँस बन्न कएने छैक, आ
बाजक पाँखितर दबल दिन कें आब
जरैत रहबाक साहस नहि बँचलै। एहि
अद्भुत परिस्थिति आ अग्निमय अस्थिरतामे
बड़ सम्हारिक’ डेग उठाबक बेगरता छैक कि
घास पर पसरल सोन टूटि ने जाइक
नवगछुलीक आपसी संवाद भंग ने भ’ जाइक।