भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय / कल्पना मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं समय हूँ साहब
मैं रूकता नही
थमता नहीं
उड़ जाता हूँ फूर्रर्रर्रर्र से
मुझे ढूँढते हो
पकड़ने की करते हो कोशिश
पर पकड़ पाते नहीं
सुनो इक बात राज की
मै मिलूंगा
माँ की लोरी में
दोस्तों की आँखमिचोली में
आंगन की धूप में
प्रेमिका के रूप में
जब जब ठहरोगे इनमें
पाओगे मुझको।