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समर्थ / जितेन्द्र निर्मोही
Kavita Kosh से
जब बलती आग से
काला लोहा
सूर्ख होकर
बाहर निकलता है
और उस पर
चलता है
लुहारन का बड़ा घन
जो लुहारन के पलटने
के साथ साथ
जल्दी जल्दी चलता है
उस वक्त
नरम मिजाज के
लोगों का पसीना
छूट जाता है ।
और जानकार
ये समझते हैं
यह है
नारी का
सामर्थ्य स्वरूप।
अनुवाद- किशन ‘प्रणय’