भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समर्पण / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

....सुन ! मेरे ही अंशी सुन
वह जो धारे है
कब किससे बोले है
जो बोले भी है कभी
सुने है कौन
उसको कौन समझे है
सुलाने को तुझे
सुनाई ही नहीं कभी लोरी
जागता रह कर सुने तो सुन....