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समर भूमि / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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नव उत्साह - सजल पावसकेर समर-भूमि ई साओन-भादव।
देखि विकट उत्ताप जगत भरि, विकल लोक आतपमे जरि-जरि
प्रखर ग्रीष्म-शासनसँ आसन डोलि उठल सुरपुर पुरुषक धरि!
तानि-मेघ-धनु विन्दु-बाण लय क्रुद्ध युद्धमे जुटल पवन-जव
नव उत्साह सजल पावर केर समर-भूमि ई साओन-भादव।।1।।
नील-नील घन-घटा जकर अछि ढाल, खंग, विद्युत करगत अछि!
ग्रीष्म अरिदलक छिन्न अगसँ रक्त-धार की वरसि रहल अछि?
नभसँ लय वसुधा धरि सगरो रणसागर उमड़ल ई अभिनव
नव उत्साह-सजल पावसकेर समर भूमि ई साओन-भादव।।2।।