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समर / ऋतु रूप / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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शिशिर जेन्है-जेन्है बदलै छै रूप
तेन्है-तेन्है कामनियो
शिशिर दंश सेॅ बचै लेॅ
दिन मेॅ तेॅ धूप केॅ समेटी केॅ बैठै छै,
एंगन मेॅ, छत्तोॅ पर
राती रजाय मेॅ सिमटी केॅ
शिशिर केॅ चिढ़ावै छै
फेनू बिगड़लोॅ छै रूप आय माघोॅ के
गोस्सा सेॅ तमतम
आरो हुन्ने छै
कामिनी के देहोॅ पर
केसर के
कस्तूरी के
लेप, भला की करतै माघ।

मतर माघे तॅे माघो छेकै
बूढ़ोॅ जुअनका, आ बच्चा केॅ हपकै लेॅ
बाघ छेकै
रहि-रहि कामिनी केॅ देखी गुर्रावे छै
मतर कामनियो होनै छै डटली
देलेॅ छै हाँक अपनोॅ पाहुन परदेशी केॅ
आवै के निमंत्रण।
तबेॅ की करतै शिशिर।