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समवेत / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
संगीत-सहायिनी
सुकण्ठी
आ
जीवन की तृष्णा को
गा !
सप्त-सुरों से
स्पन्दित हो
अग-जग,
संगीतक बन जाये
सूना मग !
ला —
सुरबहार-वीणा-मृदंग
विविध वाद्य ला
बजा,
सुकण्ठी गा !
जीवन की तृष्णा को
गा !