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समाजक रूप जँ झलकय तखन साकार अछि कविता / बाबा बैद्यनाथ झा
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समाजक रूप जँ झलकय तखन साकार अछि कविता
कतहु शृंगार अछि कविता कतहु अंगार अछि कविता
जखन अन्याय केर बल पर करय क्यो देश पर शासन
तखन जनता-जनार्दन लए बनै ललकार अछि कविता
जखन दैहिक धरात पर करय क्यो प्रेम ककरोसँ
तखन ई मिलन अवसर लए मधुर-उपहार अछि कविता
जखन क्यो ज्ञान-गंगा मे लगाबय प्रेमसँ डुबकी
तखन संजीवनी सन ई सरस रसधार अछि कविता
लगय रुचिगर ई तखने टा जखन हो पेट मे दाना
जतय अछि भूखकेर ज्वाला ततय बेकार अछि कविता
सर्मपण-भाव संग ‘बाबा’ पहिर कऽ प्रेम केर चश्मा
जतय देखू ओतय सभठा सगर संसार अछि कविता