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समाज की खातर मरने वाले / रणवीर सिंह दहिया

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1857 की आजादी की पहली जंग हुई। चार महीने तक दिल्ली पर हमारा राज्य स्थापित हो गया। बहुत से कारणों से चलते अंग्रेजों ने फिर कब्जा कर लिया। इतना तसदुद किया कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। यह जंग उस वक्त तक के सबसे महान आंदोलनों में एक थी। अंग्रेजों के पिठूओं को इनाम दिये गये तथा विद्रोहियों पर कहर ढाया गया। उसी दौर में एक मुहावरा चला साहब की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी नहीं होनी चाहिये। मगर एक बात साप हो गई कि अंग्रेजों का भारत से जाना शत प्रतिशत तय हो गया था जो कि सौ साल बाद हुआ। देश के शहीदो को दुनिया की कोई ताकत नहीं मार सकती। क्या बताया भलाः

समाज की खातर मरने वाले आज तलक तो मरे नहीं॥
कुरबान देश पर होने वाले कदे किसी से डरे नहीं॥
अजीजन की हंसी हवा में आज भी न्योंए गूंज रही
चारों धाम यो मच्या तहलका हो दुनिया मैं बूझ रही
बैरी को नहीं सूझ रही पिछले गढे इबै भरे नहीं॥
फौजियां मैं जगा बनाई सी आई डी बढ़िया ढाल करी
उन बख्तां मैं अजीजन नै पेश कुरबानी की मिशाल धरी
जवानी मैं हुंकार भरी कदे होंसले म्हारे गिरे नहीं
मेरठ आम्बाला और मेवात एक बर ली अंगड़ाई थी
मिलकै लड़ी लड़ाई थी न्यारे रहे लाल पीले हरे नहीं॥
बेशक पहली जंग हारे अंग्रेज का जाना लाजमी होग्या
ठारा सौ सतावण बीज देश मैं म्हारी आजादी के बोग्या
अंग्रेज का सूरज डबोग्या बेशक हम भी पार तिरे नहीं॥
सतावण नै राह दिखाई हजारा मंगल पांडे आगै आये
सौ साल पाछै बलिदान सैंतालिस मैं हटकै रंग ल्याये
रणबीर सिंह नै छन्द बनाये कलम दवात जरे नहीं॥

अंग्रेजां के बंगले देख कै कोए भी घणा दंग रैहज्या॥
राजा नवाब पाछै छोड्डे बाकी ना कोए उमंग रैहज्या॥
कई कई नौकर बंगले के मैं हुकम बजाया करते
घंटों चुप खड़े रहते जमीन कानही लखाया करते
बदेशी फूल बाग मैं वे हांगा लवाकै उगवाया करते
मेम साहिबा की करैं चाकरी खूबे डांट खाया करते
व्यवहार इसा उनका कैसे षान्ति होए बिना भंग रैहज्या॥
हुकम चलाना डांट मारना आदत मैं षुमार देख्या
सजा सुनादें माणस मरादें रोज का त्यौहार देख्या
तीन देशीज पै एक गोरा फौज का इसा व्यौहार देख्या
तीन तैं छह पै एक करया अंग्रेजां का यो विचार देख्या
इस संघ्या मैं बीज क्रान्ति के