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समाधि-लेख / मदन डागा

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मैंने

इसलिए आँसू नहीं टपकाया

कि आँसू की एक बूँद

जुल्म के आगे पूर्ण विराम-सी खड़ी

देह के पाँव तले गिर कर

उसे विस्मयादि बोधक चिन्ह न बना दे!

और अब

साँस थकने पर जो

डैश-सा पसर गया हूँ मैं

यह न समझना कि मर गया हूँ मैं!

हक़ीक़त में पसरने के बहाने

ज़िन्दगी को ही रेखांकित कर रहा हूँ मैं

मैं, हाँ मैं!

सर्वहारा मैं!

तुम्हारा मैं!!