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समानता / अभिमन्यु अनत
Kavita Kosh से
मों-स्वाज़ी के समंदर से
चार कदम आगे
देख आया मैं
चुनाव के दौरान
दिए गए वायदे पूरे होते
गरीब धनी के भेद को मिटते
गरीब तो नहीं मिला वहाँ
पर धनी सैलानियों को बालू पर पसरे
धूप में नंगे देख आया
अपने ही गाँव के
जमनी चाची के बच्चों जैसे
जमनी चाची के बच्चे पर अब
नंगे नहीं रहते
सैलानियों की मेहबानी को वे
अब दिन-रात पहने होते हैं ।