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समुद्री मछुवारों का गीत / कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
हमारी रोटी है समुद्र
हमारी पोथी है समुद्र
हमारे तन में जो मछलियाँ
समुद्र की हैं
हमारे जीवन में जो रंग विविध
समुद्र के हैं
धैर्य और नमक है
हमारे रक्त का रास्ता
हवा ओ हवा
कृतज्ञ हैं
विपरीत हो तब भी
आकाश ओ आकाश
कृतज्ञ हैं
छेड़े हो असहयोग तब भी
पानी ओ पानी
कृतज्ञ हैं
छलक रहे हो ज्यादा फिर भी
हवा का सब रंग देखा है
आकाश का देखा है रंग सब
पानी का सब रंग देखा है
मरी हुई मछली है हमारा सुख
सह लेंगे
मौसम का द्रोह
एक मोह का किनारा है हमारा
सजगता का सहारा है
रह लेंगे लहरों पर
हम अपनी साँसों के दम पर जिएँगे
जैसे जीते हैं सब
अपने भीतर के समुद्र का भरोसा है प्रबल।