भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुद्र-2 / पंकज परिमल
Kavita Kosh से
समुद्र को मथ कर
लोग सुरा भी ले गए
और सुधा भी
घोड़े भी ले गए और हाथी भी
लक्ष्मी भी ले गए
और जड़ी-बूटी संभालकर
वैद्यराज धन्वन्तरि भी
रफू-चक्कर हो गए
समुद्र को उस क्षण मर जाने की
इच्छा हुई
पर हाय।
उसके हिस्से में तो हलाहल भी नहीं बचा