भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुद्र और आदमी / आन्ना स्विरषिन्स्का / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
समुद्र को तुम नहीं कर सकते वश में
चाहे फुसला कर
या फिर ख़ुश होकर।
लेकिन तुम हंस तो सकते ही हो
उसकी शक़्ल पर ।
हंसी एक चीज़ है
उनके द्वारा खोजी गई
जिन्होंने एक लघु जीवन जिया
हंसी के उफान की तरह ।
यह अनन्त समुद्र
कभी नहीं सीख पाएगा
हंसना ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह
......................................................................
यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।