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समुद्र के किनारे / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
कितने सारे पेड़ चाहिएं नारियल के
इस प्रदेश को हरा-भरा दिखने के लिए
और बगल से, वेग से आगे बढ़ता पानी समुद्र का
जिस पर जलते हुए सूर्य की चिंगारी ठंडी होती हुई।
इस रेतीले तट पर निशान ही निशान लोगों के
जैसे सभी को पहचान दे सकती हो यह जगह।
हवा उठती है बार-बार लहरों की तरह
मेरे पंख हों तो मैं भी उड़ चलूं।
चारों तरफ यात्री ही यात्री
और सामने सूचना पट पर लिखा है
खतरा है पानी के भीतर जाने से
और एकाएक अनुशासन को टटोलता हूं
मैं अपने भीतर।
और यकीन करता हूं कि
खुशियों के साथ इनका भी कुछ संबंध है।