भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुद्र के सामने जाने पर / निशांत
Kavita Kosh से
					
										
					
					समुद्र के पास पहुचकर पता चला
कितना? 
कितना बड़ा है आसमान! 
कितना? 
कितना बड़ा है समुद्र! 
और 
कितने? 
कितने छोटे है हम 
घर के एक पानी के नल से भी छोटे 
सच्चाई क्या है? 
किसे सच माने बैठे है हम! 
पानी के लिए 
चपरासी पर हुक्म चलाते हुए 
समुद्र के सामने जाने पर 
चपरासी के सामने 
शर्म से झुक जाता है मेरा सर।
 
	
	

