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समुद्र तट की ओर उड़ते हुए-1 / इदरीस मौहम्मद तैयब

मेरी नन्हीं मरियम के नाम

ज़िद्दी हूँ मैं
और मेरी ज़बान पर खिलता है एक ख़ुशनुमा गीत
मरियम की वे हैरान आँखें
मुझे दूर से घूर रही हैं
एक नवजात दिन
क्योंकि लोहे की कोठरी में बंद करने से मेरा ख़ून
फ़व्वारे की तरह घर की पंख लगी याद से उबलने लगता है
मेरी कामना अंतरिक्ष के अरण्य में
तितली के रंगीन पंख की मानिन्द है
इसलिए मैं उसकी दुनिया में दाख़िल होता हूँ
प्रसन्न
चमकते शब्दों से भरा हुआ
तब मैं उसके नन्हें से हाथ पर उतरता हूँ
वहाँ बैठे हुए
उसके हाथ की लकीरों और पहाड़ियों को
कस कर पकड़े हुए
उसकी हथेली में बने
तंग रास्तों की पेचीदगी में
ऐसे आराम फ़रमाता हूँ
जैसे जंगलों में धरती का चेहरा ।

रचनाकाल : त्रिपोली, 13 दिसम्बर 1979
अँग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस