समुद्र तट पर / नरेश अग्रवाल
इतने लोगों की भीड़
इनके साथ रहूं या साथ छोड़ दूं?
मैं अकेला समुद्र तट पर
एक मात्र कुर्सी पर भी कर सकता हूं विश्राम
चारों तरफ जल, जैसे नहीं हो कुछ इसके सिवा
अगर कुछ है तो मैं ही हूं इतना भर ही।
इस सुबह की धूप में कोई मजाक नहीं करता
न ही चढ़ता है किसी पेय का नशा
आंखें ढूंढ़ती रहती हैं रंग-बिरंगी बोटें
और यात्री उन पर आते-जाते हुए।
हर छोटा बच्चा रेत से घर बनाना चाहता है
जैसे यह हमारी पैदाइशी ख्वाहिश
और भाग रहे हैं जो मछलियों के पीछे
जाल उनके पंजों की तरह हिलते हुए
पूरे बाजार में समुद्री खाद्य पदार्थ टंगे हुए
जैसे चित्रित करते हों सूखे समुद्र को।
कितना कुछ है यहां
और मैं देखता भर हूं सिर्फ समुद्र की लहरों को
लहरें मेरे पास आती हुई, मुझसे दूर जाती हुई
मुझे अपने पास आने का प्रलोभन देती हुई।