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समुद्र हूँ मैं / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
समुद्र हूँ मैं
खारा
आपादमस्तक
नमक है मेरा चेहरा,
नमक हैं मेरे होंठ,
नमक हैं मेरी साँसें,
उमड़ती चली आती हो
तुम वेगवान,
सरिते !
तुम न होतीं गर
समाती नहीं मुझमें
ढेर सारी तरल मिठास के साथ
बूँद-बूँद समा नहीं जातीं मुझमें
तो न जाने कब की
नमक के विस्तार में
गल गई होती मेरी देह