भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समूचे आँगन में / अनुभूति गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समूचे आँगन में
बड़े चाव से
गुलाब तो लगाये
छलावों
भुलावों
अलगावों में,
बनते रिश्ते भी
बिगड़-से गये
अब तो
पनपते हैं
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
बस
काँटे ही काँटे
मन की बस्तियों में
गहरी झनझनाहट से भरे
चीखते
चिल्लाते
साँय-साँय करते हुए
सन्नाटे...