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समै री चोट जिको सैवै है आदमी / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
समै री चोट जिको सैवै है आदमी
सही साची बात कैवै है आदमी
रिस्ता नाता सगळा काचै काच री पड़तां
किसी जमीं माथै पग टिकावै है आदमी
हरियाळी मंजळयां रा सपना लिया आंख्यां
पीळै पत्तै रो जीवण बितावै है आदमी
बिस्वास आस्थावां सै तार तार हुयग्यां
कठै कठै कार्यां लगावै है आदमी
पर्यावरण री सांसां रेडियोधर्मी धूड़
ब्लडकैंसर रो जीवण जीवै है आदमी
सै दिसावां पै‘री अन्ध्यारी पोसाकां
किण अकास पै सूरज उगावै है आदमी
पारदर्शी भीतां बो स्वारथ री रचै
एक्यूरियम री जिन्दगी जीवै है आदमी
खिड़क्यां रै फ्रेमां हर आंख अठै है कैद
सही साचो रूप कियां जाणै है आदमी
सर्वाधिकार तो बेच्या सै दूजां रै हाथां
अनुग्रह री जिन्दगी बितावै है आदमी