भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सम्बोधन-एक / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
खिलता बुराँस
महकता कूजा
हवा में ठरता
पसारता धूप में
चाँदनी में खेलता
काँसे की कटोरी -सा
खनकता
तुम्हारा प्यार.........
अक्तूबर 1987