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सम्बोधन-तीन / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
किसने शीशियों में भरकर
बंद किया है प्यार
कौन तय कर रहा है
ज्यामिति के कायदे
इसके लिए
इस कोने पड़ा-पड़ा
झनक उठा है
सितार
हवा की एक
सिहरन के साथ
अक्तूबर 1987