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सम्बोधन / शिवकुटी लाल वर्मा

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माँ ! तुम मुझे गुलाब का फूल कहती हो
बताओ कहाँ है वह टहनी
जिस पर मैं खिला हूँ ?

माँ ! तुम मुझे चिड़िया कहती हो
बताओ कहाँ है वह आकाश
जिसमें मैं उड़ता हूँ ?

माँ ! तुम मुझे अपने स्वप्नों की सोनमछली कहती हो
बताओ कहाँ है वह जल
जिसमें मैं तैरता हूँ ?

और माँ !
क्या मैं एक साथ ही
गुलाब, चिड़िया और सोनमछली हूँ ?

माँ ! तब मुझे
भविष्य का रूप-रंग भी बता दो
क्या वह उन हाथों की तरह होगा
जो फूल को टहनी से तोड़ लेते हैं ?

क्या वह शिकारी की बन्दूक से छूटी हुई
उस गोली की तरह होगा
जो चिड़िया को आकाश से
नीचे गिरा देती है ?

क्या वह उस मछुवे के जाल की तरह होगा
जो सोनमछली को
जल से अलग कर देता है

मुझे तुम कोई और सम्बोधन दो, माँ !