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सम्मान-मान बेटी, है आन-बान बेटी / कैलाश झा 'किंकर'
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सम्मान-मान बेटी, है आन-बान बेटी।
बेटी की सुरक्षा में, खुद आसमान बेटी॥
बेटी को है बचाती, बेटी को है बढ़ाती
बेटी को है पढ़ाती, हर ज्ञानवान बेटी।
है श्रृष्टि का नियम यह, हुंकार है समय का
अब मानना पड़ेगा, बेटा समान बेटी।
बेटी जिगर का टुकड़ा, बेटी भविष्य सुखकर
बेटी से घर सुहाना, रखती है मान बेटी।
बेटी है लाज घर की, सिर का है ताज बेटी
बेटी बने सुशिक्षित, दुनिया-जहान बेटी।
बेटी की भ्रूण हत्या, सौ फीसदी रुके अब
बेटी की ज़िंदगी की, थामे कमान बेटी।