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सम्मेलन / शम्भु बादल
Kavita Kosh से
सम्मेलन लाया गया है
शहर छोटा है
सम्मेलन बहुत बड़ा
सो छलक-छलक पड़ता है
कविता-कहानी-साहित्य-संस्कृति
शोषण-ग़रीबी-सर्वहारा पर
बड़े-बड़े विचार हैं
वातानुकूलित सम्मेलन के पास
रंग-बिरंगी साड़ियों में महिलाएँ
चहकती युवतियाँ
सपनीले युवक
खेतों-खदानों के लोग
सड़कों-फ़ुटपाथों के जीव
सभी आँखें फाड़-फाड़ देखते हैं
कान खड़े कर-कर सुनते हैं
उनकी ही बात
कैसे-कैसे लोग
कैसे-कैसे कहते हैं !
मुर्गों की टाँगें बड़ी प्यारी हैं
सो मुर्गे फड़फड़ा रहे हैं टाँग-रहित
सम्मेलन के बाहर
अब मुर्गे बाँग नहीं देंगे
लोगों की टूटेगी नींद कैसे
इस गँवई शहर में ! ?