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सम्राज्ञी आ रही हैं / पंकज सिंह

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नागरिको उत्सव मनाओ कि सम्राज्ञी के दर्शन तुम्हें करने हैं

भीतभाव से प्रणाम संभालते हुए अपने दुखों के कीचड़ में

रुंधे गले से ही स्वागत गीत गाते हुए

उत्सव मनाओ


सम्राज्ञी का रथ तुम्हारी अंतड़ियों से गुज़रेगा

रथ गुज़रेगा तुम्हारी आत्मा की कराह और शोक से

तुम्हारे सपनों की हरियालियाँ रौंदता हुआ

रथ गुज़रेगा रंगीन झरनों और पताकाओं की ऊब-डूब में


संभलकर, अपनी मुर्दनी और आक्रामक मुद्रा को

मीठी रहसीली स्वागत भंगिमाओं में छिपाते हुए

स्वतंत्रता की इस दोगली बहार में

झुक जाओ भद्र भाइयो

सम्राज्ञी आ रही हैं


सम्राज्ञी तुम्हारी सामूहिक नींद पर झुकी हुईं

आवाज़ों के पुल से धीरे-धीरे नीचे की ओर उतरती हुईं

सम्राज्ञी

तुम्हारी आँखों को

कृतज्ञता और आभार के जल से भरती हुईं

आने वाली हैं


सड़कों के किनारे बच्चे खड़े होने चाहिएँ, अधनंगे मुस्कराते

बचपन के उदासीन खंडहरों में पड़े फटे हुए चित्रों से

हाथों में फूल लिए बच्चे...

स्त्रियाँ तुम्हारी खिड़कियों से झाँकती, हाथ हिलाती

खड़ी होनी चाहिएँ ॠतुओं के कामनाहीन सूनेपन में


ख़ुशियों की आहटें अगोरती स्त्रियाँ...

पेड़ होने चाहिएँ तुम्हारी ठूँठ इच्छाओं की तरह सन्नद्ध विविधवर्णी

और हर तरफ़ सदियों की मुर्दनी भरी ऊसर आँखें

बिछी होनी चाहिएँ आती-जाती हवाओं के रेशे-रेशे में


कि चौकन्ने सभासद हर कहीं मौज़ूद होंगे

कि चौकन्ने सभासद वायदों और सपनों की गुनगुनाहट में

हर कहीं मौज़ूद होंगे तुम्हारे तेवर खंगालते

भविष्य और उत्सव के फूलों के आसपास


सम्राज्ञी आ रही हैं


इस औंधे नगर में हुई हत्याओं की सूचनाएँ सभासद देंगे उन्हें

कि ख़तरनाक बन्दी मारे गए कारागार लांघते हुए

कि कुछ असभ्य लोग मारे गए कुलीन नागरिक आवासों के आसपास

अपने अंधेरों से

संतुष्ट और शालीन अमात्यों का रिश्ता ढूंढ़्ते हुए


और लज्जित भाव से तुम सब सिर हिलाओगे

कि तुमने व्यर्थ का साहस ख़र्च किया, व्यर्थ का मूर्खतापूर्ण विरोध

कि राजकीय हिंसा की सारी घटनाएँ जन्म-जन्मांतरों के नियम हैं

दुस्साहसिक प्रजाओं के लिए...


घोड़ों, मनुष्यों और शस्त्रास्त्रों की भीषण चकाचौंध में

तुम्हारी टांगों की लगातार थरथराहट सम्राज्ञी को दिख न जाए

ध्यान रखना, स्नायुओं की सिहरन शान्त रखना

सम्राज्ञी आने वाली हैं तुम्हारे नगर को आगामी वर्षों के लिए

गर्म और सुखद स्मृतियों और आश्वासनों से भरने


इससे पहले कि रथ के घोड़ों की पहली टाप सुनाई दे और

धूल के पहले बादल सीमान्त पर उठते हुए नगर की ओर आएँ

तुम एक पहचानहीन हलचल हो जाओ

जिसका कोई भी उपयोग सम्राज्ञी के सैनिक और सभासद करें

तैरते हैं ज़हरीले बादल तुम्हारी आकांक्षाओं के आकाश में

सभागारों में उमड़ते आते हैं झूठ के हज़ारों रंग


सम्राज्ञी की प्रजावत्सलता से गदगद

अपने ज़ंग लगे चेहरे मांज आओ प्रिय नगरवासियो

सम्राज्ञी आ रही हैं


सम्राज्ञी आ रही हैं

(रचनाकाल : 1974)