भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरक़े का कोई दाग़ जबीं पर नहीं रखता / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरक़े<ref>चोरी (विशेषतय:किसी अन्य की ग़ज़ल के शे'र की)plagiarism</ref>का कोई दाग़ जबीं<ref>माथे</ref>पर नहीं रखता
मैं पाँव भी ग़ैरों की ज़मीं पर नहीं रखता

दुनिया मेँ कोई उसके बराबर ही नहीं है
होता तो क़दम अर्शे बरीं पर नहीं रखता

कमज़ोर हूँ लेकिन मेरी आदत ही यही है
मैं बोझ उठा लूँ कहीं पर नहीं रखता

इंसाफ़ वो करता है गवाहों की मदद से
ईमान की बुनियाद यक़ीं पर नहीं रखता
 
इंसानों को जलवाएगी कल इस से ये दुनिया
जो बच्चा खिलौना भी ज़मीं पर नहीं रखता

शब्दार्थ
<references/>