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सरकारी शिक्षा / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
बेदम है सरकारी शिक्षा, निकला हुआ कचूमर
जहाँ पाठ और समय बराबर, वेतन की हो खाई
धोती-कुर्ता पर लटकी है अंग्रेजों की टाई
बरसी पर गाजे-बाजे के साथ उठे हों झूमर ।
पढ़े बिना ही बच्चे खुश हैं; आये, हुए नदारत
छुट्टी के पहले निकले हैं पिकनिक-मौज मनाने
बचे हुए बच्चे किलास में बैठे गाए गाने
अंगरेजी धुन पर ही जन गण मन अधिनायक भारत।
हुई परीक्षा, सौ में सौ ही प्रथम हुए, क्या अचरज
नब्बे से ऊपर नम्बर थे, लगभग-लगभग सौ थे
उसके भी जो पढ़ने-लिखने में बिल्कुल ही गौ थे
पोथी को पन्ना कर डाला, कालिदास के वंशज ।
शिक्षा पर सरकार हमेशा बनी रही है गिरगिट
क्यों ना प, फµउच्चारण में दाँत करे तब किटकिट।