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सरकारें नहीं सुनतीं / चरण जीत चरण
Kavita Kosh से
कि जैसे साइकिलों की घंटियाँ कारें नहीं सुनतीं
कुछ ऐसे मुफलिसों का दर्द सरकारें नहीं सुनतीं
किसी का झूठ भी चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज बनता है
किसी का सच तलक खंडहर की दीवारें नहीं सुनतीं
हमें इक बार फ़िर से बात करनी चाहिए थी दोस्त
मुहब्बत, दोस्ती और अम्न तलवारें नहीं सुनतीं
नहीं जाता किसी सूरत भी ये अफ़सोस अब दिल से
मेरा रोना तेरी पायल की झनकारें नहीं सुनतीं